महाराष्ट्र में राजनीतिक विभाजन का कारण क्या है?

महाराष्ट्र की राजनीति में 1960 के बाद से कांग्रेस का वर्चस्व रहा, जिसमें दलित और मुसलमानों का समर्थन और "बहुजन" विचारधारा ने बड़ी भूमिका निभाई। लेकिन, शिवसेना के उदय और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन ने महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा परिवर्तन लाया।

जाति का मुद्दा

जाति महाराष्ट्र की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाती रही है। हालांकि प्रगतिशील आंदोलन और आर्थिक सुधारों से अपेक्षा थी कि यह प्रभाव कम होगा, लेकिन भूमि अधिकार, शहरी सहकारी संस्थाएं, और लोकल सत्ता जैसे मुद्दे अब भी समाज में विभाजन का कारण बन रहे हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में मराठा और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) जैसे समुदायों का प्रभुत्व देखा जा सकता है, जिनके अपने-अपने राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे हैं।

प्रमुख राजनीतिक गठबंधन और विवाद

  • बीजेपी-शिवसेना गठबंधन: यह गठबंधन महाराष्ट्र में हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए बनाया गया था। शिवसेना और बीजेपी के बीच विचारधारा में अंतर रहा है, जो हाल ही के वर्षों में अधिक स्पष्ट हुआ।

  • राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP): 1999 में कांग्रेस से टूटकर बनी एनसीपी ने मराठा समुदाय को अपनी ओर आकर्षित किया और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके महाराष्ट्र में प्रमुख भूमिका निभाई।

  • ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM): असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने महाराष्ट्र में मुसलमानों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी पकड़ बनानी शुरू की है, खासकर सामाजिक भेदभाव और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों को उठाकर।

राजनीतिक दलों में परिवर्तन और विभाजन

2014 के विधानसभा चुनावों में प्रमुख पार्टियों ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, जिसके कारण वोटों में बंटवारा हुआ और कई नए राजनीतिक समीकरण बने। इसके परिणामस्वरूप राज्य में राजनीतिक परिदृश्य और अधिक जटिल हो गया।

मौजूदा स्थिति

राजनीतिक दल अब अधिक लचीले हो गए हैं और विचारधारा की तुलना में सामरिक गठबंधनों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इस विभाजन का कारण केवल वैचारिक मतभेद ही नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए बदलते गठबंधन भी हैं। मराठा समुदाय के बीच शक्ति का संतुलन बनाए रखना, शिवसेना और बीजेपी के बीच बढ़ती दूरी, और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अलग-अलग राजनीतिक विकल्पों का उदय - ये सभी कारक महाराष्ट्र की राजनीतिक तस्वीर को बदल रहे हैं।

महाराष्ट्र की राजनीति में यह विविधता और विभाजन राज्य की प्रगति और स्थिरता को कैसे प्रभावित करेगा, यह देखना बाकी है। 

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